कलयुग में पवित्रता और साधना का महत्व
परिचय
कलयुग में मनुष्य के सामने सबसे बड़ी चुनौती है – पवित्रता की रक्षा करना। आधुनिक जीवन में अनेक आकर्षण और विकर्षण ऐसे हैं जो हमारी बुद्धि, आचरण और मन को दूषित कर सकते हैं। गुरुजनों के अनुसार, जब शरीर और मन अशुद्ध हो जाते हैं, तो परम पवित्र भगवान के स्मरण में स्थिर रह पाना कठिन हो जाता है।
कलयुग के पाँच प्रमुख विकार
गुरुजी के उपदेश के अनुसार, यदि इनमें से कोई एक भी जीवन में प्रविष्ट हो जाए, तो यह पतन का कारण बन सकता है:
- मदिरापान
- परस्त्री गमन
- मानस (मांस) खाना
- जुआ खेलना
- चोरी करना
इनके अलावा भी कई छोटे-छोटे दोष जीवन में आ सकते हैं, किन्तु ये पाँच अत्यंत घातक और प्रधान माने गए हैं।
पवित्रता का महत्व
पवित्रता केवल बाहरी नहीं, बल्कि अंतरात्मा की स्थिति है। शास्त्रों में कहा गया है कि जैसे स्वच्छ जल में ही कमल खिल सकता है, वैसे ही शुद्ध मन में ही भक्ति और ईश्वर का स्मरण फलित होता है।
पवित्रता के तीन स्तर:
- शारीरिक पवित्रता: स्वच्छता, स्नान, शुद्ध वस्त्र का प्रयोग।
- मानसिक पवित्रता: सद्भाव, ईर्ष्या और द्वेष से मुक्त विचार।
- वाणी की पवित्रता: मर्यादित और सत्य भाषण।
मन को पवित्र रखने के उपाय
- प्रत्येक दिन प्रातः ध्यान और प्रार्थना करें।
- सत्संग और bhajans का श्रवण करें।
- अभद्र संगति से दूरी रखें।
- दान, सेवा और करुणा से जीवन को समृद्ध करें।
नकारात्मक प्रवृत्तियों से बचाव
अवगुणों को त्यागने के लिए संयम और विवेक आवश्यक है। पहले उनके कारणों की पहचान करें, फिर उनमें परिवर्तन हेतु सजग प्रयास करें। शुरुआत दिनचर्या से करें — जैसे सुबह-सुबह उठकर पुण्य कर्म में लगना।
संदेश का सार
“जब तक शरीर और मन पवित्र नहीं, तब तक परमपवित्र प्रभु का स्मरण करना कठिन है।”
Message of the Day
श्लोक: “शुद्धेन मनसा देवमर्चयेद् विजितेन्द्रियः।” — पवित्र मन और संयमित इन्द्रियों से ही भगवान की पूजा सार्थक होती है।
आज के 3 कदम:
- दिन की शुरुआत स्नान और ध्यान से करें।
- अन्न, वाणी और विचार में शुद्धता रखें।
- एक अवगुण की पहचान कर उसे त्यागने का संकल्प लें।
भ्रम-निवारण: पवित्रता केवल बाहरी दिखावे से नहीं आती; यह भीतर की सद्भावना और सकारात्मक विचार से उत्पन्न होती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. क्या पवित्रता केवल साधुओं के लिए है?
नहीं, पवित्रता हर इंसान के लिए महत्वपूर्ण है। यह जीवन को सुखमय और संतुलित बनाती है।
2. क्या बाहरी स्वच्छता ही पर्याप्त है?
नहीं, आंतरिक स्वच्छता — यानी विचार और भावना की पवित्रता — भी आवश्यक है।
3. कलयुग में पवित्र जीवन संभव है?
हाँ, यदि हम सजग रहें, सत्संग और अच्छे कर्म को अपनाएँ तो यह संभव है।
4. क्या भजन सुनना पवित्रता बढ़ा सकता है?
हाँ, भजन मन को शांत और सकारात्मक बना देते हैं, जिससे पवित्रता बनी रहती है।
5. पवित्रता के लिए क्या त्यागना चाहिए?
मदिरा, व्यभिचार, हिंसा, असत्य और बुरा संग।
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Originally published on: 2023-04-18T02:55:08Z



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