मोह-माया से मुक्ति और सच्चे भजन की शक्ति

मोह-माया का स्वप्न

गुरुदेव ने बड़ी सरलता से बताया कि यह जगत स्वप्न-समान है। जैसे स्वप्न में सब कुछ वास्तविक लगता है, वैसे ही मोह-माया में फंसे जीव को यह संसार सत्य प्रतीत होता है। जब आत्मा जाग्रत होती है, तब सब झूठा प्रतीत होता है।

स्वप्न में डूबने, रोने, हँसने का अनुभव सत्य लगता है, पर जागने पर सब शून्य। इसी प्रकार जब सच्चा ज्ञान होता है, तो माया का आकर्षण मिट जाता है।

सबसे प्रेरक कथा: त्रिलोचन भक्त और भगवान का अंतर्यामी रूप

एक बार एक सज्जन भक्त त्रिलोचन जी और उनकी पत्नी संतों की सेवा में संलग्न थे। उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की कि कोई ऐसा सेवक मिले जो संतों की मन की इच्छा जानकर भोजन तैयार कर दे।

एक दिन चौदह वर्ष का एक युवक आया—फटे कपड़े, पर दिव्य तेज। उसने कहा, “मैं सेवा करने आया हूँ, कोई वेतन नहीं चाहिए।” वह संतों के लिए उत्तम भोजन बनाता और स्वयं पत्नी के हाथ से भोजन पाता।

समय बीता, सब ठीक चलता रहा—जब तक एक दिन त्रिलोचन जी की पत्नी ने पड़ोसन से यह बात न कह दी कि हमारा नौकर बहुत भोजन करता है। बस, उसी क्षण वह सेवक अदृश्य हो गया। तब त्रिलोचन जी को ज्ञात हुआ कि वह स्वयं भगवान विष्णु थे, जो “अंतर्यामी” नाम से नौकर बनकर आए थे।

मoral insight (सार)

  • भगवान हर रूप में हमारे बीच रहते हैं, पर हम पहचान नहीं पाते।
  • जो निःस्वार्थ सेवा करता है, वहीं सच्चा भक्त है।
  • भगवान छलिया हैं, छुपकर मिलते हैं, लेकिन उनके प्रेम की पहचान श्रद्धा से ही होती है।

तीन व्यावहारिक अनुप्रयोग

  • हर व्यक्ति में ईश्वर का अंश देखो—घर, कार्यस्थल या सड़क पर।
  • सेवा करते समय लाभ की अपेक्षा मत रखो; यह भगवान की पूजा है।
  • किसी के गुण-दोष न देखो, आत्मा में परमात्मा को देखो।

चिंतन हेतु प्रश्न

क्या मैं अपने दैनिक जीवन में भगवान की उपस्थिति अनुभव करता हूँ? या मैं बाह्य रूप देखकर ही निर्णय करता हूँ?

भजन ही सच्चा प्रयोग

गुरुदेव ने कहा—केवल ज्ञान की बातें जानना पर्याप्त नहीं, जब तक भजन नहीं, अनुभव नहीं। जैसे भूखा व्यक्ति पहले खाना चाहता है, स्वाद बाद में समझ आता है, वैसे ही पहले नाम-जप आवश्यक है।

नाम-जप मन को माया से मुक्त करता है। जब हृदय में नाम निरंतर बहे, तब ईश्वर स्वयं अपने स्वरूप में प्रकट हो जाते हैं।

चरित्र और जीवन की पवित्रता

आधुनिक युग में जीवन की पवित्रता बड़ी चुनौती है। भोजन, विचार और संग—तीनों को पावन रखें। तभी भगवान का प्रेम अनुभव होगा।

  • पवित्र भोजन करें, हिंसा और व्यसन से दूर रहें।
  • मोबाइल व तकनीक का सदुपयोग करें—सत्संग, प्रवचन, भजनों सुनने के लिए।
  • मन में सच्चा संस्कार जगाएं कि हम भगवान के ही अंश हैं।

शरणागति से माया विजय

एक भाव स्पष्ट हुआ—शरणागति से ही माया के बंधन टूटते हैं। जब मन, वचन और कर्म भगवान को समर्पित हो जाते हैं, तब मोह घटता है और आत्मा जाग्रत होती है।

सेवा, तपस्या और नाम-जप—ये तीन मार्ग माया से पार ले जाते हैं।

मूल संदेश

यह संसार ईश्वर द्वारा रची हुई सुंदर लीला है। पर जब हम “मैं” और “मेरा” में फंसते हैं, तब दुख प्रारंभ होता है। जप, करुणा और समर्पण से ही हम आनंद प्राप्त करते हैं।

भक्ति में विश्वास

भगवान हमेशा हमें देख रहे हैं, प्रेम से चला रहे हैं। जब हम उन्हें याद करते हैं, तब उनका आह्वान नहीं करते, बल्कि उनकी याद को प्रत्युत्तर देते हैं। सुख-दुख में उनका नाम पकड़ना ही सच्ची साधना है।

आत्मिक takeaway

जब हम अपने भीतर भगवान को देखते हैं और बाहर हर जीव में भी वही परमत्व महसूस करते हैं, तब मोह-माया का पर्दा गिर जाता है। वही क्षण आत्मा की स्वतंत्रता और सच्चे प्रेम का होता है।

एक gentle reflection

आज कुछ क्षण मौन में बैठें और पूछें—मैं किसे सबसे अधिक अपना मानता हूँ? क्या वह भी ईश्वर का रूप नहीं?

FAQs

1. क्या केवल भजन से माया से मुक्ति संभव है?

हाँ, क्योंकि भजन मन को शुद्ध करता है। जब हृदय स्वच्छ होता है, माया स्वतः हट जाती है।

2. क्या घर-गृहस्थ में रहकर भी भगवान को पाया जा सकता है?

निश्चित रूप से। कर्म को भगवान को समर्पित करो और भजन करते हुए वही कार्य करते रहो।

3. मैं नाम-जप में मन नहीं लगा पाता, क्या करूँ?

छोटे समय से प्रारंभ करो, एकाग्रता धीरे-धीरे आएगी। संत-संगति लो और भक्ति में दृढ़ रहो।

4. क्या भगवान वास्तव में हमें याद करते हैं?

हाँ। हम उन्हें तभी याद कर पाते हैं, क्योंकि वे पहले हमें याद करते हैं।

5. आधुनिक जीवन में भक्ति का अभ्यास कैसे करें?

तकनीक का सही उपयोग करें—प्रवचन, सत्संग और spiritual guidance प्राप्त करें। नाम-जप करते रहें।

समापन

प्रेमानंद महाराज की शिक्षाएँ हमें बार-बार स्मरण कराती हैं कि भगवान हमारे भीतर हैं। उनका स्मरण ही जागरण है। मोह-माया के स्वप्न से जगो, और जीवन को प्रभु-समर्पित कर दो। यही सच्चा आनंद है, यही शाश्वत मुक्ति।

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Originally published on: 2024-08-16T15:07:29Z

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