Aaj ke Vichar: माया के स्वप्न से जागना
केन्द्रीय विचार
हम सब इस जगत में एक स्वप्नवत जीवन जी रहे हैं। जैसे स्वप्न में सब कुछ सच्चा लगता है पर जागने पर झूठा प्रतीत होता है, वैसे ही यह संसार भी परमात्मा का खेल है—मोह, माया, सुख, दुख सब केवल दृश्य हैं। जब भजन और नाम-जप से चेतना जागती है, तो आत्मा जान जाती है कि सच्चा ‘मैं’ वही है जो भगवान से जुड़ा है।
क्यों यह विचार आज आवश्यक है
वर्तमान समय में मनुष्य बाह्य सुखों और भोगों की दौड़ में उलझ गया है। हम जानते हैं कि माया झूठी है, पर फिर भी उसी में मोह से बंधे हुए हैं। यही भ्रम और दुख का कारण है। अगर हम भीतर से जग जाएं—अपने जीवन को प्रभु की शरणागति में रखें—तो संसार हमें भय नहीं देगा।
तीन जीवन प्रसंग
१. गृहस्थी में जागरण
एक गृहस्थ महिला हर दिन अपना कार्य भगवान को अर्पित भाव से करती है—रसोई को प्रसाद मानती है, परिवार को प्रभु की देन समझती है। धीरे-धीरे उसका जीवन शांति में बदल जाता है। मोह मिटता है, और कार्य तपस्या बन जाता है।
२. व्यापार में जागरण
एक व्यापारी पहले लाभ को ही जीवन मानता था। जब उसे ज्ञात हुआ कि सच्चा लाभ सेवा और ईमानदारी है, उसने हर सौदे को भगवान को समर्पित किया। उसके भीतर अद्भुत सुकून आया। धन घटा नहीं, बल्कि बढ़ गया—क्योंकि दुर्भावना के बिना किया गया कर्म ही धन्य होता है।
३. विद्यार्थी का जागरण
एक युवा जो व्यसन और भ्रम में फंसा था, रोज एक नाम जप करने लगा। उसके अंदर तप का बल आया, मित्रता पवित्र हुई, और विचार उज्ज्वल। धीरे-धीरे वह समझने लगा कि जीवन की वास्तविक उन्नति ब्रह्मचर्य और पवित्र विचार में है। वह जाग गया।
संक्षिप्त ध्यान
दो मिनट आंखें बंद करिए। अपने हृदय में यह भाव लाएं—‘मैं आत्मा हूं, भगवान का अंश हूं।’ सांस लें और मन में दोहराएं—‘राधे-राधे’। जैसे-जैसे आप जानते हैं कि जो कुछ मेरे पास है वह भगवान का है, वैसे-वैसे मोह का पर्दा उठेगा और सच्चा आनंद प्रकट होगा।
व्यावहारिक उपाय
- हर दिन कुछ समय भजन में लगाएं, चाहे पांच मिनट ही हों।
- भोजन से पहले उसे मन में भगवान को समर्पित करें।
- अपना कर्म करते समय यह विचार रखें—यह सेवा है, अधिकार नहीं।
- विपत्ति में घबराएं नहीं; यह भी जागृति का अवसर है।
Aaj ke Vichar: माया से मुक्ति के कदम
माया की शक्ति इतनी प्रबल है कि ज्ञानीजन भी इसके आकर्षण में पड़ सकते हैं। पर भगवान की शरण लेकर, नाम जप से इंद्रिय संयम रखकर, और सत्संग में रहकर हम इसकी जकड़न से मुक्त हो सकते हैं। जब हम संसार को सत्य नहीं मानते, तो दुख स्वतः मिट जाते हैं।
कुछ प्रश्न और उनके उत्तर
प्रश्न 1: क्या मोह-माया से पूरी तरह मुक्त होना संभव है?
हाँ, संभव है जब हम भगवान को सर्वत्र देखना सीखते हैं। शरणागति और भजन ही वह साधन हैं जो माया का पर्दा हटाते हैं।
प्रश्न 2: जीवन में तपस्या का क्या अर्थ है?
तपस्या का अर्थ है अपनी इंद्रियों को वश में रखना—भोगों में न बहना, दुख को सहना, और भगवान का नाम स्मरण करना।
प्रश्न 3: क्या संसार छोड़ने से भक्ति बढ़ती है?
संसार छोड़ने की आवश्यकता नहीं; भाव बदलना आवश्यक है। वही काम भगवान के लिए करें, फिर वही कर्म तपस्या बन जाता है।
प्रश्न 4: क्या ज्ञान के बिना भक्ति संभव है?
भक्ति से ही ज्ञान का जन्म होता है। बिना भजन के ज्ञान केवल जानकारी है; प्रयोग नहीं।
प्रश्न 5: यदि मन बार-बार माया में फँसता है तो क्या करें?
नाम जप करते रहिए। माया भगवान की ही शक्ति है; शरण में रहकर वही हमें आगे बढ़ाती है।
अंतिम चिंतन
जब जागरण होता है, तो हर व्यक्ति देखता है—जो कुछ भी था, वह सपने की तरह चला गया। शेष रह गया केवल प्रेम और नाम। वही सत्य है। उसी सत्य के साथ जीवन को सजाएं, दूसरों को प्रेम दें, और हर पलों को साक्षी भाव से जिएं। भजन करें, भगवान को समर्पित रहें, और भीतर जाग जाएं—फिर कोई मोह नहीं रहेगा।
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Originally published on: 2024-08-16T15:07:29Z


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