द्वेष से मुक्त भक्ति – राधा बाबा की करुण कथा से आत्मजागरण

भगवत प्राप्ति का मार्ग और द्वेष से मुक्ति

गुरुदेव के वचनों में एक अत्यंत मार्मिक प्रसंग आता है — पूज्य राधा बाबा की आत्मकथा। यह कथा केवल एक घटना नहीं, बल्कि मनुष्य के भीतर छिपे द्वेष, अपराधबोध, और आत्मशुद्धि की यात्रा का दर्पण है।

राधा बाबा की कथा

राधा बाबा भारत के एक महान संत थे। स्वतंत्रता संग्राम के समय उन्होंने ब्रिटिश अत्याचार को अपनी आंखों से देखा। उन्होंने अनुभूत किया कि कैसे निर्दोष भारतीयों को बूटों से कुचला गया, कैसे अपमान सहकर भी वे मौन रहे। इस दर्द ने उनके भीतर अंग्रेज़ों के प्रति गहरा द्वेष जगा दिया।

संत बन जाने पर भी बाबा का यह द्वेष पूरी तरह मिट नहीं पाया था। जब भी कोई गोरा व्यक्ति दिखता, उनके मन में वही दृश्य दोहरने लगते। उन्हें स्वयं अनुभव हुआ कि यह द्वेष उन्हें भगवान से दूर कर रहा है। बाबा ने निश्चय किया कि अब यह भाव समाप्त होना चाहिए।

एक दिन एक अंग्रेज व्यक्ति उनके पास आया, जो सेवा कार्यों में भाग लेना चाहता था। अचानक उस पुरानी पीड़ा के वशीभूत होकर बाबा ने क्रोध में आकर उसपर कुछ कठोर कहा। तत्क्षण ही उनके अंतर में ईश्वर की वाणी गूंजी — “हे बाबा, तुम द्वेष नहीं कर सकते। जहाँ द्वेष है, वहाँ मैं नहीं हूँ।”

उस क्षण राधा बाबा की चेतना रूपांतरित हो गई। उन्होंने उसी अंग्रेज को प्रेमपूर्वक प्रणाम किया और कहा — “तुम्हारे रूप में आने वाला मुझे यह सिखाने आया कि बिना निर्वैरता के भक्ति पूरी नहीं होती।” तबसे बाबा के जीवन में केवल एक ही संकल्प रह गया — समदृष्टि और प्रेम। वे सभी में भगवान को देखने लगे।

नैतिक बोध (Moral Insight)

भक्ति का सार है – घृणा से मुक्त प्रेम। जब तक हमारे मन में किसी के प्रति द्वेष, अपमान, या निंदा का भाव रहेगा, तब तक भगवान का सच्चा अनुभव नहीं हो सकता। द्वेष, चाहे किसी अपराधी या विरोधी के प्रति क्यों न हो, हमें ईश्वर से अलग कर देता है।

  • भगति का पहला चरण है विनम्रता।
  • दूसरा चरण है अपराधबोध का प्रायश्चित और सुधार।
  • तीसरा चरण है – सर्वत्र ईश्वर का अनुभव।

तीन व्यवहारिक प्रेरणाएँ

  1. क्षमा का अभ्यास करें: प्रतिदिन रात को सोने से पहले उन सभी का मन से क्षमादान करें जिन्होंने आपको दुख दिया। धीरे-धीरे हृदय हल्का होता जाएगा।
  2. सात्त्विक संग चुनें: ऐसा वातावरण चुनें जहाँ शांति, प्रेम और भक्ति के भाव पनपें। संग ही मन की दिशा तय करता है।
  3. अंतर्मन का नामस्मरण: बाहरी तिलक, माला, वस्त्र से अधिक महत्वपूर्ण है भीतर उठने वाला ‘राधा-नाम’। जब हृदय में नाम बजता है, तब पाप और द्वेष गलते जाते हैं।

मृदुल आत्मचिंतन के लिए प्रश्न

आज रात स्वयं से पूछिए — “क्या मेरे भीतर किसी के प्रति रूठा हुआ कोना है?” यदि हाँ, तो भगवान से कहिए, “हे प्रभु, उस हृदय को भी प्रेम से भर दो जिसको मैंने दूर किया।” यह एक सरल ध्यान से आरंभ होकर गहरे शांति में बदल जाता है।

गृहस्थ जीवन में भक्ति का संतुलन

भक्ति केवल वनवास में नहीं, बल्कि गृहस्थ के मध्य भी हो सकती है। लेकिन इसका रहस्य यह है कि हम भीतर से भगवान से जुड़े रहें और बाहर से सामान्य व्यवहार करें। जैसे चंदन में विष रहते हुए भी वह विष से अछूता रहता है, वैसे ही भक्त भी समाज में रहकर प्रभावित हुए बिना सात्त्विक रह सकता है।

  • मांस, शराब, और असात्त्विक चीजों से दूरी रखें।
  • किसी भी संबंधी के प्रति तिरस्कार न रखें, पर उनके कुसंस्कारों में भाग भी न लें।
  • भक्ति को दिखावा न बनाएं — अंदर का भाव ही वास्तविक साधना है।

गुरुदेव कहते हैं — “अगर मन में स्मरण चलता रहे, तो कोई विपत्ति छू नहीं सकती।” इसीलिए गीता का संदेश है – मामनुस्मर युद्ध च. अर्थात अपने कर्तव्य कर्म को करते हुए भीतर में नाम का स्मरण रखो।

शरणागति का प्रभाव

जब कोई सच्चे भाव से भगवान के चरणों में समर्पण करता है, तब उसका पूर्वजन्मों का अंधकार मिटने लगता है। पापों का स्वीकार और सुधरने का संकल्प ही वास्तविक प्रायश्चित है।

यदि किसी ने कभी हिंसा, मादक पदार्थ या असत्य का जीवन जिया हो, पर अब हृदय से पश्चाताप कर नाम जप में लीन हो जाए, तो वही क्षण उसके जीवन का पुनर्जन्म बन जाता है।

जीवन में अपनाने योग्य सूत्र

  • नामस्मरण ही हर परिस्थिति में शरण है।
  • वैर-भाव हटे बिना ईश्वर नहीं मिलते।
  • बाहरी प्रतीक उपयोगी हैं, पर भीतरी स्मृति ही सार है।

आध्यात्मिक निष्कर्ष

राधा बाबा की कथा हमें सिखाती है कि भक्ति का सबसे ऊँचा स्वर प्रेम है, और प्रेम का सबसे पवित्र रूप है – निर्वैरता। किसी से भी विरोध या घृणा न रखे, बस नाम के रस में भीगे रहें।

यदि आप अपने मार्ग में कभी उलझन महसूस करें, तो सच्ची spiritual guidance लें — यह आपको अंतर्मन के शुद्ध स्वर तक पहुँचाने में सहायक होगी।

सामान्य प्रश्न (FAQs)

1. क्या गृहस्थ व्यक्ति पूर्ण भक्ति कर सकता है?

हाँ, यदि वह अपने कर्तव्यों में रहते हुए भीतर से नाम जप और स्मरण करता है, तो वही सच्चा साधक है।

2. अगर रिश्तेदार असात्त्विक आचरण करते हों तो उनसे कैसा व्यवहार करें?

प्रेम और नम्रता रखें, पर उनके आचरण का अनुकरण न करें। किसी से घृणा न करें, केवल अंतर में अपने मार्ग को सुरक्षित रखिए।

3. क्या केवल नाम स्मरण ही पर्याप्त है?

नाम स्मरण सबसे सरल और शक्तिशाली उपाय है। यह मन, बुद्धि और कर्म तीनों को शुद्ध करता है।

4. यदि गलती बार-बार हो जाती है तो क्या भक्ति व्यर्थ है?

नहीं, प्रत्येक प्रयास एक नई शुरुआत है। भगवत कृपा असीम है; सच्चे हृदय से पुनः उठ जाइए।

5. द्वेष मिटाने का सबसे सरल उपाय क्या है?

प्रार्थना और नाम स्मरण। जब मन में शत्रु का स्मरण आए, तो भगवान से कहें – “हे प्रभु, उसमें भी तुम हो।” इतना कहने से ही द्वेष पिघलने लगता है।

राधे राधे! प्रेम ही सबसे बड़ा साधन है।

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Originally published on: 2023-12-22T12:30:10Z

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