Aaj ke Vichar: द्वेष को त्याग कर भीतर की शांति प्राप्त करें
केन्द्रीय विचार
आज का विचार है कि जब तक हमारे हृदय में किसी व्यक्ति या परिस्थिति के प्रति द्वेष रह जाएगा, तब तक सच्ची भक्ति और आंतरिक शांति का अनुभव नहीं हो सकता। द्वेष हमारे भीतर आग की तरह जलता है जो दूसरों को नहीं, हमें ही जलाता है। यह विचार हमें यह सिखाता है कि प्रेम और करुणा के मार्ग पर चलने के लिए मन में क्षमा का भाव रखना ही वास्तविक साधना है।
यह विचार आज क्यों महत्वपूर्ण है
आज के समय में संबंधों में तनाव, प्रतियोगिता और असंतोष बहुत बढ़ गया है। लोग छोटी-छोटी बातों पर रुष्ट हो जाते हैं और भीतर ही भीतर द्वेष को पोषित करते हैं। इस द्वेष का परिणाम यह होता है कि मन अशांत हो जाता है, ध्यान भटकने लगता है, और आत्मा का प्रकाश मंद पड़ जाता है। ऐसे में, द्वेष त्याग का अर्थ केवल क्षमा नहीं बल्कि आत्मोन्नति भी है। यह हमारे आत्मिक जीवन को ऊँचा उठाने का द्वार बनता है।
तीन जीवन परिदृश्य
१. परिवार में असहमति
कभी-कभी परिवार के सदस्य हमारे मूल्य या आचार-विचार से भिन्न होते हैं। कोई मांसाहारी है, कोई मद्यपान करता है, कोई बातों में तीखापन दिखाता है। ऐसे में द्वेष नहीं, बल्कि तटस्थ प्रेमपूर्ण व्यवहार अपनाना चाहिए। अपनी शुद्धता बनाए रखते हुए नम्रता से अपनी सीमा तय करना ही साधक का धर्म है।
२. कार्यक्षेत्र में प्रतिस्पर्धा
कार्यालय में या व्यापार में जब कोई हमें नुकसान पहुँचाता है, तब मन में द्वेष उठता है। किंतु याद रखें — द्वेष से हम उसी ऊर्जा को खो देते हैं जो हमें आगे बढ़ा सकती है। शांतिपूर्वक कर्म करते हुए भगवान का स्मरण करते रहना ही सही उत्तरदायित्वपूर्ण प्रतिक्रिया है।
३. समाज में विरोधी प्रवृत्तियाँ
कभी-कभी समाज में देखने को मिलता है कि लोग धर्म-विरुद्ध आचरण करते हैं, असत्य बोलते हैं, या अनुचित कर्मों का समर्थन करते हैं। ऐसे में उनसे घृणा करना नहीं, बल्कि उनके प्रति करुणा का भाव रखकर उनसे दूरी बनाए रखना ही संतुलित मार्ग है। जैसे चंदन विष से घिरा होने पर भी सुवास देता है, वैसे ही हमारी साधना भी बाहरी कुसंग से मुक्त रह सकती है।
संक्षिप्त ध्यान-सत्र
अपनी आँखें बंद करें। गहरी सांस लें। स्मरण करें कि जिस व्यक्ति से आपको द्वेष था, वह भी उसी परमात्मा की सृष्टि का अंश है। मन में कहें — “मैं तुम्हें क्षमा करता हूँ और तुम्हें शुभ कामना देता हूँ।” दो बार गहराई से राधा नाम का स्मरण करें और अनुभव करें कि हृदय धीरे-धीरे हल्का हो रहा है।
व्यावहारिक सुझाव
- हर दिन दस मिनट शांत बैठकर किसी भी नकारात्मक भाव को पहचानें और उसे प्रेम में बदलने का अभ्यास करें।
- गृहस्थ जीवन में तटस्थता और नम्रता का संतुलन बनाए रखें।
- दूसरों के आचरण से प्रभावित हुए बिना अपना सात्त्विक आहार, व्यवहार और नाम-स्मरण जारी रखें।
- कभी किसी को अपमानित न करें, क्योंकि अपमान से द्वेष पुनः जन्म लेता है।
प्रेरणादायक सूत्र
“स्तोत्र, जप और सेवा केवल तब फल देते हैं जब हमारे अंदर किसी के प्रति द्वेष शेष नहीं रहता। द्वेष मिटाना ही ईश्वर के निकट जाना है।”
प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्र.१: क्या द्वेष मिटाने का अर्थ सबके साथ मेलजोल करना है?
उ. नहीं, इसका अर्थ है भीतर से वैर-भाव मिटाना। बाह्य रूप से तटस्थ रहते हुए भी प्रेमपूर्ण भावना बनाए रखना ही सही है।
प्र.२: अगर कोई निकट व्यक्ति गलत आदतों में लिप्त है तो कैसे व्यवहार करें?
उ. नम्रता से सीमित रहें, घृणा नहीं करें। उनका मार्ग यदि गलत है तो उनके साथ भोजन आदि से बचें पर मन में द्वेष न रखें।
प्र.३: द्वेष को practically कैसे छोड़ा जाए?
उ. हर द्वेषपूर्ण विचार आने पर उसे भगवान को समर्पित करें और नाम जप करें। इस अभ्यास से धीरे-धीरे हृदय शुद्ध होता है।
प्र.४: क्या निरंतर नाम-स्मरण से पुराने पाप मिट सकते हैं?
उ. यदि सच्चे मन से भगवान का आश्रय लेकर नाम स्मरण किया जाए तो मन की शुद्धि होती है और पापों का संस्कार कमजोर पड़ता है।
प्र.५: साधक को आधुनिक जीवन में भक्ति कैसे निभानी चाहिए?
उ. आधुनिक जीवन में भी सात्त्विकता, संतुलित कर्म और ईश्वर स्मरण को अपनाकर पूर्णता महसूस की जा सकती है। भीतर भक्ति हो, बाहर सहज व्यवहार हो।
आत्मिक निष्कर्ष
द्वेष को हटाना कमजोरी नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शक्ति का परिचायक है। जब हम किसी से वैर नहीं रखते, तब हमारे भीतर करुणा और संतोष का झरना बहता है। यही द्वेष-मुक्त भाव अंततः ईश्वर का साक्षात्कार कराता है।
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Originally published on: 2023-12-22T12:30:10Z


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