अयोग्य के माध्यम से ईश्वर का कार्य
अयोग्य भी बन सकता है ईश्वर का साधन
जब हम सोचते हैं कि ईश्वर का कार्य केवल विद्वान, योग्य और विशेष लोगों के द्वारा ही होता है, तो हम अपनी सीमित दृष्टि से देख रहे होते हैं। सच्चाई यह है कि भगवान कभी-कभी अयोग्य व्यक्ति को भी निमित्त बनाकर कार्य करवाते हैं। इसमें न विद्वता की आवश्यकता होती है, न बड़ी डिग्रियों की।
दिव्य कार्य का रहस्य
सत्संग, प्रवचन और भक्ति का असली उद्देश्य है — मन की मानसिकता में परिवर्तन। यह परिवर्तन किसी मानवीय कौशल से नहीं, बल्कि केवल ईश्वर की कृपा से ही संभव है। जब प्रभु किसी को निमित्त बनाते हैं, तो वह लाखों लोगों के हृदय में भक्ति का दीप जलाते हैं।
क्यों यह विचार अभी जरूरी है
- आज के समय में लोग योग्य-अयोग्य की तुलना में उलझे रहते हैं।
- भक्ति मार्ग में अहंकार सबसे बड़ा अवरोध बन सकता है।
- ईश्वर की इच्छा सर्वोपरि होती है; वही तय करते हैं कौन किस स्थान पर कार्य करेगा।
तीन जीवन में लागू होने वाले उदाहरण
- ग्राम्य जीवन: एक साधारण किसान अपने गावं में भजनों के आयोजन से लोगों को भक्ति मार्ग में जोड़ देता है।
- शहर में: एक राह चलते दुकानदार, जो प्रवचन नहीं दे सकता, लेकिन सत्य और प्रेम से व्यवहार करता है, अपने आस-पास सकारात्मक ऊर्जा फैलाता है।
- परिवार में: घर का सबसे शांत सदस्य, जो बस नाम-स्मरण करता है, बच्चों के भीतर धार्मिक संस्कार डाल देता है।
‘आज के विचार’ – व्यावहारिक चिंतन
मुख्य विचार: योग्यता नहीं, ईश्वर की कृपा ही कार्य बनाती है।
महत्व: क्योंकि इससे हम हर व्यक्ति में प्रभु की संभावना देख सकते हैं。
परिस्थिति 1: जब कोई आपके सहयोगी की प्रतिभा को कम समझे, और आप जानें कि उसका हृदय कितना शुद्ध है।
परिस्थिति 2: मंदिर में कोई अनपढ़ पुजारी होते हुए भी सबको शांति और प्रेम दे रहा है।
परिस्थिति 3: आपके सामने जीवन में एक बड़ा निर्णय है और अचानक किसी सामान्य व्यक्ति का कहा एक वाक्य मार्गदर्शन दे देता है।
संक्षिप्त मनन: आँखें बंद करके सोचें – मेरे आस-पास कौन ऐसा है जिसे मैं योग्य नहीं मानता, पर जो प्रभु की इच्छा से दिव्य कार्य कर रहा है? उसे आभार दें।
अनंत खेल
ईश्वर अपने भक्तों को समय-समय पर प्रकाशित करते हैं और फिर गुप्त कर देते हैं। कोई संत चला जाता है, तो उसकी जगह दूसरे का आगमन होता है; लेकिन यह तय करना हमारे हाथ में नहीं, यह प्रभु का विधान है।
भक्ति में विश्वास
इस सत्य को अपनाकर हम अपने जीवन में हर जगह दिव्यता को पहचान सकते हैं। विद्वता का अहंकार छोड़कर, हम अपने और दूसरों में भगवत्ता का अनुभव कर सकते हैं। यदि आप प्रभु के चरणों में स्थिर रहकर जीवन जीना चाहते हैं, तो दिव्य साधनों और bhajans के माध्यम से यह भाव जागृत किया जा सकता है।
प्रश्नोत्तर
प्र. क्या अयोग्य व्यक्ति भी परिवर्तक बन सकता है?
हां, ईश्वर की इच्छा से अयोग्य व्यक्ति भी हृदय परिवर्तन का माध्यम बन सकता है।
प्र. क्या संत की जगह कोई दूसरा ले सकता है?
नहीं, हर संत अद्वितीय होता है, केवल प्रभु ही तय करते हैं अगला प्रकाश कहां होगा।
प्र. भक्ति में मुख्य बाधा क्या है?
अहंकार और बाहरी दिखावा भक्ति में सबसे बड़े अवरोध हैं।
प्र. प्रभु की इच्छा कैसे पहचानी जाए?
शांति, प्रेम और सत्य की अनुभूति से हम प्रभु की इच्छा पहचान सकते हैं।
प्र. क्या सत्संग सुनना जरूरी है?
हाँ, सत्संग से मन निर्मल होता है और मार्ग स्पष्ट होता है।
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Originally published on: 2024-12-24T12:06:50Z


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