माया का खेल और आत्म-मुक्ति का रहस्य

माया का अद्भुत चौसर

गुरुजी के इस प्रवचन में एक गहरी और हृदय को छू लेने वाली सच्चाई छिपी है — जीवन का यह खेल माया का चौसर है। इसमें खेल भी वही है, खिलाड़ी भी वही है, हार भी वही और जीत भी वही। जब मनुष्य यह समझ लेता है कि सब कुछ एक ही चेतना द्वारा संचालित है, तब वह इस खेल से मुक्त हो जाता है।

भावार्थ

गुरुजी हमें यह सिखाते हैं कि जीवन में चाहे रोग हो, दुख हो या मोह हो, सब उसी परम चेतना का खेल है। जब हम ‘मैं’ का भाव छोड़कर केवल ‘वह’ को देखने लगते हैं, तब जीवन का सारा बोझ हल्का हो जाता है। शरीर की क्षणिकता और आत्मा की स्थिरता को पहचानना ही सच्ची मुक्ति है।

कथा: ज्ञानी और रोगी साधक

एक वृद्ध साधक को जब ज्ञात हुआ कि उसे गंभीर बीमारी है, तो वह कुछ समय के लिए विचलित हो गया। उसके गुरु ने कहा — “बेटा, अब तुम्हें ईश्वर ने सोचने और समझने का समय दिया है। यह बीमारी दंड नहीं, एक अवसर है।” साधक ने अपने जीवन का पूरा दृष्टिकोण पलट दिया। उसने शरीर के दुख में भी भगवान का हाथ देखना शुरू किया। धीरे-धीरे, उसकी पीड़ा तपस्या में बदल गई। वह कहता — “मुझे रोग नहीं मिला, मुझे जागरण मिला।”

कथा से नैतिक सीख

जब जीवन में कठिनाई आए, तब उसे अभिशाप नहीं, आत्म-ज्ञान का मार्ग समझो। जिस क्षण हम अपनी अवस्था का अनुभव ईश्वर की दृष्टि से करने लगते हैं, वही क्षण मोक्ष की ओर पहला कदम होता है।

तीन व्यावहारिक अनुप्रयोग

  • स्वीकृति का अभ्यास: जो भी परिस्थिति मिले, उसे स्वीकार कर लो। स्वीकृति से शांति का मार्ग खुलता है।
  • दैनिक स्मरण: हर सुबह कुछ क्षण अपने भीतर कहो — “खेल वही है, खिलाड़ी वही है।” इससे अहंकार धीरे-धीरे मिटता है।
  • सेवा और करुणा: जब दर्द आए, तो किसी अन्य के दर्द में सांत्वना दो। सेवा से आत्मा की गहराई स्पर्श होती है।

चिंतन हेतु प्रश्न

आज अपने अंतःकरण से पूछो — क्या मैं जीवन को केवल अपनी दृष्टि से देख रहा हूँ या उस शक्ति की दृष्टि से जो मुझे चला रही है?

आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि

जीवन का सबसे सुंदर रहस्य यही है कि हम उसी शक्ति के हिस्से हैं जो हमारी कठिनाइयाँ भी रचती है और उनसे मुक्ति भी देती है। जब यह खेल समझ में आ जाए, तो भीतर शांति का सागर उमड़ पड़ता है। अब जीत और हार दोनों ही मधुर लगने लगते हैं।

आध्यात्मिक निष्कर्ष

गुरुजी के अनुसार, मनुष्य का परम लक्ष्य ‘खेल देखने वाले’ बनना है। जब आप केवल साक्षी बन जाते हैं — तब द्वंद्व समाप्त हो जाता है। वही अवस्था मुक्ति है।

जीवन में अपनाने योग्य सरल मार्ग

  • हर दिन कुछ मिनट ध्यान या भजन में लगाइए ताकि भीतर की शांति महसूस हो।
  • रोग या विपत्ति को आत्मिक शिक्षा के रूप में स्वीकार करें।
  • अपने हृदय से कृतज्ञता व्यक्त करें — जीवन जैसा है, वैसा ही सुंदर है।

अंतिम प्रेरणा और संबंध

यदि आप इस ज्ञान को और गहराई से समझना चाहते हैं, तो संतों के bhajans सुनना आत्मा को शांत करता है। वहां की दिव्यता आपके मन को स्थिर करेगी और जीवन के इस खेल को ईश्वर की दृष्टि से देखने का बल देगी।

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Originally published on: 2023-12-21T03:23:30Z

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