Aaj ke Vichar: स्वीकृति ही ईश्वर की कृपा का द्वार

केंद्रीय विचार

ईश्वर की कृपा तभी कार्य करती है जब हम उसे विनम्रता से स्वीकार करते हैं। किसी संत के वचनों को हृदय से ग्रहण करना अपने भीतर परिवर्तन का द्वार खोलना है। जब मनुष्य अपने कर्मों, विचारों और संस्कारों को सुधारने का निर्णय लेता है, तो वही क्षण उसका पुनर्जन्म होता है।

यह विचार आज क्यों महत्वपूर्ण है

आज की दुनिया में हर व्यक्ति किसी न किसी चिंता, अस्थिरता या असंतोष से गुजर रहा है। कई बार हमें लगता है कि हमारे पास सब कुछ है, फिर भी मन खाली है। इसका कारण यह है कि हम “स्वीकृति” की कला भूल गए हैं।

  • हम सुनते हैं, पर हृदय में नहीं उतारते।
  • हम जानते हैं, पर लागू नहीं करते।
  • हम समझते हैं, पर स्वीकार नहीं करते।

स्वीकृति का अर्थ केवल मान लेना नहीं है; इसका अर्थ है अपने अहं को थोड़ी देर के लिए शांति देना, ताकि ईश्वर की वाणी खुद हमसे बात कर सके।

तीन वास्तविक जीवन परिदृश्य

1. कार्यालय का तनाव

रवि एक कॉर्पोरेट नौकरी में काम करता है। हर दिन असंतुष्टि और थकान महसूस होती है। जब उसने किसी संत के प्रवचन में सुना — “अपने काम को ईश्वर की सेवा समझो”, तो पहले तो हँस पड़ा। पर कुछ दिन बाद उसने इसे अपनाने का प्रयास किया। अब वही कार्यस्थल उसके लिए साधना स्थल बन गया।

2. परिवार में मतभेद

मीना अपनी सास के साथ लगातार झगड़ती थी। एक दिन उसने एक साधु का वचन सुना, “जो झुकता है वही संबंधों को जोड़ता है।” उसने इसे स्वीकार किया और अगली बार झुकी रही। उसी दिन से घर में शांति लौट आई।

3. समाज सेवा का भाव

अरुण हमेशा सोचता था कि उसके जीवन का कोई अर्थ नहीं। एक शिविर में उसे बताया गया कि दूसरों की सेवा ही परम धर्म है। उसने सप्ताहांत में जरूरतमंद बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। अब उसका जीवन उद्देश्यपूर्ण लगने लगा।

संक्षिप्त ध्यान और चिंतन

अपनी आँखें बंद करें। गहरी साँस लें। स्वयं से पूछें — “मैं किन सच्चाइयों को सुनकर भी जीवन में अपनाने से डरता हूँ?” इस प्रश्न को बिना उत्तर दिए, बस अनुभव करें। एक धीमी मुस्कान के साथ कल्पना करें कि ईश्वर की कृपा आपके भीतर उतर रही है।

हर क्षण जब आप किसी सच्चे विचार को स्वीकार करते हैं, उसी क्षण आप ईश्वर को स्वीकार करते हैं। इस लिए हर दिन कुछ पल अपने भीतर झाँकने का अभ्यास करें।

आज का सार

कर्म से पहले स्वीकार, और स्वीकार से पहले विनम्रता आवश्यक है। जीवन की हर परिस्थिति, चाहे वह सुख हो या दुःख, हमें कुछ सिखाने आई है। जब हम इसे मृदु हृदय से मान लेते हैं, तब जीवन दिव्य हो उठता है।

FAQs

प्रश्न 1: क्या हर कठिनाई को ईश्वर की कृपा मानना उचित है?

हाँ, क्योंकि हर अनुभव हमें कुछ सिखाने आता है। कभी-कभी कृपा कठिनाइयों के रूप में छिपी होती है।

प्रश्न 2: स्वीकृति और निष्क्रियता में क्या अंतर है?

स्वीकृति जागृति है, जबकि निष्क्रियता उदासीनता। स्वीकृति का अर्थ है ईश्वर का संकेत पहचानकर सही कर्म करना।

प्रश्न 3: जीवन में संतों के वचनों को कैसे अपनाएं?

धीरे-धीरे, एक-एक विचार चुनें और उसे अपने व्यवहार में लाएँ। हर परिवर्तन छोटे कदम से शुरू होता है।

प्रश्न 4: यदि मन भटक जाता है तो क्या करें?

भटकाव स्वाभाविक है। मन को प्रेम से वापस लाएँ, दोष न दें। यह भी एक साधना है।

प्रश्न 5: क्या ध्यान केवल शांत जगह में किया जा सकता है?

नहीं, सच्चा ध्यान वही है जो व्यस्तता में भी शांति उत्पन्न करे। अभ्यास से यह संभव है।

अंतिम चिंतन

जीवन तभी सार्थक है जब हमारी चेतना दूसरों के कल्याण से जुड़ती है। प्रत्येक क्षण में चेतन रहें, और दूसरों के लिए मंगल भावना रखें। यही जीवन की श्रेष्ठता है।

यदि आप अपने भीतर भक्ति और प्रेरणा का अनुभव गहराई से करना चाहते हैं, तो divine music का आनंद लें और अपने मन को शांति की लहरों में डुबो दें।

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Originally published on: 2023-08-20T12:11:56Z

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