निर्भयता और भगवान में भरोसा – प्रेमानंद मार्ग की गूढ़ शिक्षा

प्रारंभिक विचार

जीवन के प्रत्येक उतार–चढ़ाव में जब हमारा हृदय डगमगाने लगता है, तब यही प्रश्न उठता है — मैं किस पर भरोसा करूँ? गुरुजी कहते हैं कि जिस क्षण तुम भगवान को अपने पास अनुभव कर लोगे, उसी क्षण निर्भयता स्वतः उतर आएगी। भय वही है जब हम अपने ईश्वर के सान्निध्य को भूल जाते हैं।

निर्भयता का आधार

निर्भय होने का अर्थ है — अपने भीतर यह पूर्ण विश्वास रखना कि हर परिस्थिति में परमात्मा साथ हैं। जब मन की मान्यता टूटती है, जब धन, प्रतिष्ठा या संबंधों की हानि होती है, तब भी जो ईश्वर को अपना स्वामी मानता है, उसका मन विचलित नहीं होता।

  • भय तब आता है जब हम बाहरी आधार पर टिके होते हैं।
  • शांति तब आती है जब हम भीतर से अनुभव करते हैं कि भगवान सबमें हैं।
  • यह अनुभूति केवल सुनने से नहीं आती, सतत भजन से प्रकट होती है।

प्रेरणादायक कथा – गुरुजी की गंगा किनारे रात्रिकालीन अनुभूति

गुरुजी ने एक बार अपने शिष्यों को बताया कि जब वे गंगा किनारे भ्रमण कर रहे थे, अंधेरी रात थी, चारों ओर सन्नाटा और सर्दी थी। दूर-दूर तक कोई गाँव, कोई आश्रम दिखाई नहीं दे रहा था। भय और असहायता का भाव मन में उठा। तभी दूर कहीं एक हल्की टिमटिमाती लालटेन दिखाई दी। आशा जागी कि वहाँ कोई व्यक्ति होगा जो आश्रय देगा। पर उसी क्षण भीतर से प्रश्न उठा — भगवान तो मेरे साथ हैं, जिन्होंने इस मार्ग पर चलाया, उनका भरोसा छोड़कर मैं उस दूर के प्रकाश पर क्यों विश्वास करूँ?

यह अनुभूति मन को झकझोर देने वाली थी। गुरुजी ने कहा, “हम अपने पास उपस्थित दैवी सत्ता को भूल जाते हैं और बाहरी कमजोर सहारे खोजते हैं।” उस क्षण उनका भय मिटा, आत्मा में निश्चिंतता उतर आई।

कथा का नैतिक संदेश

भरोसा उस दूर की लौ पर नहीं, उस प्रकाश पर करें जो भीतर जल रहा है। यदि हम ईश्वर में विश्वास रखते हैं तो कोई अंधकार स्थायी नहीं रह सकता।

तीन व्यावहारिक अनुप्रयोग

  • प्रार्थना में नियमितता: दिन की शुरुआत एक ईश्वर स्मरण से करें, ताकि मन सुदृढ़ रहे।
  • भय आते ही स्मरण: जब कोई संकट या असमंजस हो, उस क्षण अपनी सांसों के साथ नाम जपें।
  • सेवा का भाव: किसी की सहायता करते समय सोचें कि आप भगवान को ही सेवा दे रहे हैं। इससे अहंकार घटेगा और भरोसा बढ़ेगा।

चिंतन का कोमल संकेत

आज प्रश्न कीजिए – क्या मेरा भरोसा किसी सीमित व्यक्ति पर है या परमात्मा पर? जब मैं अंधेरे में हूँ, क्या मैं उस भीतर के प्रकाश को पहचान पाता हूँ?

भरोसा और भजन का संबंध

गुरुजी कहते हैं, “जब मुख में नाम चल रहा है – ‘राधा, कृष्ण, हरि, राम’ – तब यह संकेत है कि भगवान आपकी प्रकृति में हैं।” नाम जप केवल उच्चारण नहीं, यह साक्ष्य है कि ईश्वर तुम्हारे भीतर सक्रिय हैं। निरंतर भजन करने से भय, शोक और चिंता मिटती है क्योंकि मन प्रभु के आश्रय में स्थिर हो जाता है।

प्रहलाद की शिक्षा

पाँच वर्ष का बालक प्रहलाद जब अपने पिता हिरण्यकशिपु के क्रोध से घिरा था, तब भी उसने भय नहीं किया। उसका विश्वास था – “मेरा भगवान मेरे साथ है।” यही बालक हमें सिखाता है कि परिस्थिति नहीं, विश्वास हमारी शक्ति का स्रोत है।

नरसी मेहता का उदाहरण

नरसी मेहता जी जब निर्धनता में भी द्वारिका की यात्रा पर निकले, उनके पास कुछ नहीं था। फिर भी उन्होंने कहा – “जिसके हाथ में सृष्टि की व्यवस्था है, वह मेरे लिए सब कर देगा।” यही पूर्ण विश्वास भक्त को धन या पद से ऊपर उठा देता है।

दैनिक जीवन में निर्भयता विकसित करने के उपाय

  • हर दिन कुछ पल मौन में रहें और अपनी सांसों के साथ भगवान के नाम का जप करें।
  • जीवन की कठिनाइयों को ‘परमात्मा का संकेत’ मानें कि वह आपको नये रूप में गढ़ रहे हैं।
  • संगत में रहें – जहाँ भजन, सत्संग और प्रेम का वातावरण हो, वहाँ मन स्वाभाविक रूप से निडर बनता है।

बार-बार स्मरण रखने योग्य विचार

जो व्यक्ति ईश्वर को अपना ‘मालिक’ और ‘प्रियतम’ मानता है, वह शोक से परे हो जाता है। जब हम भीतर से भगवान को स्वीकार करते हैं, तो जीवन की हर व्यवस्था स्वयं बनी रहती है। यही सच्ची निश्चिंतता है।

आत्मिक परामर्श और संगीतमय साधना

यदि कभी मन में प्रश्न उठे कि आगे का मार्ग क्या है, तो spiritual guidance में जुड़ें। वहाँ दिव्य संगीत, संतों के भजन और प्रेमानंद महाराज जी के वचनों से आत्मा को आधार मिलता है।

आध्यात्मिक निष्कर्ष

भय केवल बाहर की छाया है; प्रकाश भीतर सदैव विद्यमान है। जब हम उस प्रकाश को पहचान लेते हैं, तब जीवन का हर अनुभव साधना बन जाता है। गुरुजी का संदेश यही है – “भगवान हर क्षण तुम्हारे साथ हैं; बस पहचान की लौ जलाए रखो।”

राधे राधे।

FAQs

1. निर्भयता क्यों आवश्यक है?

निर्भयता से मन स्थिर रहता है और हम सही निर्णय ले पाते हैं। यह विश्वास पर आधारित होती है, अहंकार पर नहीं।

2. नाम जप करने का सर्वोत्तम समय कौन-सा है?

प्रातः काल और रात्रि को सोने से पूर्व नाम जप करना मन को शांति देता है।

3. क्या कठिनाइयाँ ईश्वर की परीक्षा होती हैं?

वे परीक्षा नहीं, शिक्षा होती हैं। हर चुनौती हमारे विश्वास को गहरा करती है।

4. गुरु की भूमिका इस मार्ग में कैसी है?

गुरु वह दीप है जो हमारे भीतर के प्रकाश को दिखाता है। उनका मार्गदर्शन अंधकार मिटाता है।

5. क्या भजन जीवन की समस्याएँ हल कर सकता है?

यह बाहरी समस्याएँ नहीं मिटाता, पर भीतर इतनी शक्ति दे देता है कि हम उन्हें प्रेमपूर्वक स्वीकार सकें।

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Originally published on: 2023-07-28T11:53:22Z

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