नाम-स्मरण की शक्ति और आध्यात्मिक साहस
आज का विचार
केंद्रीय भाव: प्रतिदिन कम से कम 10 मिनट एकांत में बैठकर निरंतर नाम-स्मरण करना, चाहे वह ‘राम’, ‘राधे’, या अपने आराध्य का कोई भी पवित्र नाम हो।
क्यों यह अभी महत्वपूर्ण है
आज की भागदौड़ में मन असंख्य दिशाओं में बिखर जाता है। डिजिटल और भौतिक शोर के बीच आत्मा की पुकार सुनना कठिन हो जाता है। ऐसे समय में नाम-स्मरण न सिर्फ शांति देता है, बल्कि जीवन के हर कार्य को ईश्वर से जोड़ देता है।
तीन वास्तविक जीवन परिदृश्य
- दफ्तर में: मीटिंग के बीच छोटी-सी मानसिक प्रार्थना से तनाव कम होता है और धैर्य बढ़ता है।
- घर के काम करते हुए: बर्तन धोते या खाना बनाते समय मन ही मन नाम लेने से काम पूजा बन जाता है।
- यात्रा करते समय: यातायात के शोर में भी नाम-स्मरण आपको भीतर से शांत रखता है।
लघु मार्गदर्शित चिंतन
अपनी आँखें हल्के से बंद करें। गहरी साँस लें और छोड़ें। अब बस अपने आराध्य का नाम दोहराएँ। किसी भी बाधा को बिना विरोध किए गुजरने दें, जैसे आसमान से बादल गुजरते हैं।
आध्यात्मिक साहस
गुरुजी कहते हैं कि वास्तविक साधक वह है जो कांटे देखकर भी आगे कदम बढ़ाए और प्रभु की शक्ति से उन्हें फूल में बदल दे। यह साहस तब आता है जब हम सुख-दुख दोनों में प्रभु से प्रेम बनाए रखते हैं।
आगे बढ़ने के उपाय
- दैनिक दिनचर्या में एक निश्चित समय नाम-स्मरण के लिए तय करें।
- मन भटकने लगे तो प्रेमपूर्वक उसे वापस नाम पर लाएँ।
- सुख-दुख में समान रूप से ईश्वर को याद करें।
- सत्संग या bhajans सुनकर भाव को प्रेरित रखें।
प्रश्नोत्तर (FAQ)
1. क्या 10 मिनट पर्याप्त हैं?
शुरुआत के लिए 10 मिनट पर्याप्त हैं। धीरे-धीरे समय बढ़ाना लाभकारी होगा।
2. क्या नाम-स्मरण केवल एकांत में जरूरी है?
नहीं, मन ही मन चलते-फिरते भी किया जा सकता है, पर एकांत में ध्यान अधिक गहरा होता है।
3. मन अगर भटक जाए तो क्या करें?
मनुष्य का मन भटकना स्वाभाविक है। प्रेम से फिर से नाम पर ध्यान केंद्रित करें।
4. क्या किसी भी नाम का स्मरण संभव है?
हाँ, अपने आराध्य या ईश्वर के जिस नाम से भाव जुड़ता हो, वही स्मरण करें।
5. क्या यह अभ्यास जीवन बदल सकता है?
परिवर्तन धीरे-धीरे और भीतर से आता है, जिससे दृष्टिकोण और अनुभवों में शांति आती है।
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Originally published on: 2023-12-01T16:15:21Z



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