ममता का समर्पण: श्रीकृष्ण चरणों में प्रेम का रहस्य

भूमिका

गुरुदेव ने अपने प्रवचन में ममता की गहरी और सूक्ष्म शक्ति का रहस्य समझाया। उन्होंने बताया कि ममता एक अदृश्य डोरी है, जो जहां बंधती है, वहां हमें बांध लेती है। लक्ष्य यह होना चाहिए कि इस ममता को भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित कर दें।

कथा: ममता और गोपाल

एक बार एक मां अपने छोटे बच्चे से अत्यधिक प्रेम करती थी। बच्चा जब भयभीत होता या खुशी पाता, तो दौड़कर मां की गोद में चला जाता। गुरुदेव ने कहा — वैसे ही यदि हमारी ममता एकाग्र होकर केवल प्रभु के चरणों में हो, तो अनुकूल-अनानुकूल हर परिस्थिति में हम केवल श्रीकृष्ण की शरण में जाएंगे।

मर्म

ममता का स्थायी और संतुलित प्रांत केवल प्रभु के चरण हैं। जब हमारी ममता वस्तु, व्यक्ति या स्थान पर टिक जाती है, तो दुख, सुख, मान-अपमान हमें प्रभावित करते हैं। किंतु जब यह ममता कृष्ण चरणों में समर्पित हो जाती है, तो हमारा मन निर्मम और निरंकार हो जाता है, और हम सबको समान भाव से प्रेम करते हैं।

मोरल इनसाइट

सच्चा सुख और स्थायी शांति तब ही मिलती है जब हमारा ममत्व शरीर, इंद्रिय भोग, और संसार से हटकर केवल प्रभु में केंद्रित हो जाए।

व्यावहारिक अनुप्रयोग

  • प्रतिदिन कुछ समय नाम जप करते हुए सोचें कि मेरी ममता कहां बंधी है और उसे धीरे-धीरे प्रभु में लगाएं।
  • किसी व्यक्ति, वस्तु या सम्मान के प्रति अत्यधिक आसक्ति पर सजग रहें और उसे त्यागकर प्रभु की ओर मोड़ें।
  • सेवा करते समय भाव रखें कि यह कार्य प्रभु के लिए है, किसी व्यक्तिगत लाभ या मान्यता के लिए नहीं।

चिंतन हेतु प्रश्न

आज मेरे हृदय में सबसे अधिक ममता कहां बंधी है? क्या मैं उसे सचेत रूप से श्रीकृष्ण के चरणों में अर्पित कर सकता हूँ?

आध्यात्मिक सार

ममता का समर्पण ही भक्ति का सार है। जब यह हो जाता है, तब भक्त में शत्रु-मित्र, मान-अपमान, लाभ-हानि का कोई भेद नहीं रहता। यह स्थिति किसी पर कृपा या किसी साधन से नहीं, बल्कि सही समझ पैदा होने से तुरंत उत्पन्न हो सकती है।

सत्संग का महत्व

सत्संग में ही हमें यह सूक्ष्म ज्ञान मिलता है। संत और महापुरुष अपनी वाणी से हमारे मोह का नाश करते हैं, हमें विवेक देते हैं। श्रीमद्भागवत जैसे शास्त्र इस ज्ञान के अमूल्य स्रोत हैं।

FAQ

  • प्रश्न: ममता को हटाना इतना कठिन क्यों है?
    उत्तर: क्योंकि यह स्वाभाविक रूप से हमें प्रिय वस्तु या व्यक्ति की ओर खींचती है; ध्यान और साधना से दिशा बदली जा सकती है।
  • प्रश्न: क्या ममता का अर्थ प्रेम त्याग देना है?
    उत्तर: नहीं, बल्कि ममता का अर्थ है आसक्ति; प्रेम रहित नहीं, आसक्ति रहित होना लक्ष्य है।
  • प्रश्न: क्या बिना गुरु के यह संभव है?
    उत्तर: गुरु का सान्निध्य मार्गदर्शन देता है और प्रक्रिया को सरल कर देता है।
  • प्रश्न: व्यवहारिक जीवन में ममता का समर्पण कैसे करें?
    उत्तर: हर कार्य के पीछे प्रभु को केंद्र में रखकर, परिणाम की अपेक्षा त्यागकर।

समापन

जब हमारी समस्त ममता श्रीकृष्ण के चरणारविंद में बंध जाती है, तब जीवन सहज ही प्रेम, शांति और समभाव से भर जाता है। यही मानव जीवन का परम उद्देश्य है। यदि आप भक्ति में डूबने वाली वाणी और divine music के माध्यम से हृदय को और भी पवित्र करना चाहें, तो नियमित सत्संग और भजन श्रवण को अपनाएं।

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Originally published on: 2024-02-27T05:27:53Z

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