ममता का श्रीकृष्ण चरणों में समर्पण : जीवन का सार
जीवन के लक्ष्य और ममता का रहस्य
हमारे जीवन का परम लक्ष्य है – श्रीकृष्ण के चरणों में पूर्ण समर्पण। सत्संग में बार-बार यह संदेश दिया गया है कि हमारी ‘ममता’ में अपार शक्ति है। यह जहां लग जाती है, उसके बिना हम रह नहीं पाते। अगर यही ममता वस्तु, व्यक्ति या स्थान में बिखरी हुई है, तो यह हमें बंधन में डाल देती है।
यदि हम इस ममता को बटोरकर केवल प्रभु के चरणों में समर्पित कर दें, तो प्रभु स्वयं हमें ढूँढते हुए हमारे भीतर प्रकट हो जाते हैं।
ममता का प्रभाव और समर्पण का फल
- ममता प्रभु में लग जाए तो वह प्रभु को भी हमारे बिना रहने नहीं देती।
- जब ममता बिखरी है, तब दुख-सुख, मान-अपमान हमें प्रभावित करते हैं।
- ममता समर्पित होते ही हम समदर्शी, इच्छा-रहित, और शोक-मुक्त हो जाते हैं।
निर्मम प्रेम और निर्मल भाव
सच्चा भक्त निर्मम होता है, लेकिन सभी से प्रेम करता है। यह प्रेम किसी स्वार्थ से नहीं, बल्कि भगवत भाव से होता है। जब ममता केवल भगवान में स्थिर हो जाती है, तो हर व्यक्ति और हर वस्तु में हम उसी ईश्वर का दर्शन करते हैं।
सत्संग का महत्व
ममता को प्रभु के चरणों में अर्पित करने का विवेक और बल सत्संग से ही प्राप्त होता है। सत्संग केवल धार्मिक चर्चा नहीं, बल्कि जीवन को बदल देने वाला आत्मिक संग है। संतों की आज्ञा और संग ही हमें इस मार्ग पर दृढ़ कर पाते हैं।
जैसा संत महात्मा कहते हैं – नाम जप, ममता का त्याग, और भगवत चिंतन ये ही साधन हैं, जो बिना अधिक बाहरी साधनों के, तुरंत हमारे भीतर परिवर्तन ला सकते हैं।
सार संदेश
भगवत प्राप्ति कठिन नहीं है, कठिन है केवल प्रभु से निश्छल ममता करना। संसार और देह से ममत्व हटाकर प्रभु में प्रेम अर्पित कर दीजिए, फिर जीवन सहज एवं आनंदमय हो जाएगा।
आज का श्लोक (भावार्थ)
“जहां-जहां मन का ममत्व बिखरा है, उसे समेटकर मेरे चरणों में बांध दो, फिर शांति और आनंद तुम्हारे अपने हो जाएंगे।”
आज के 3 अभ्यास
- अपनी ममता का निरीक्षण करें – सोचें कि यह कहां बिखरी है।
- अपने प्रिय क्षणों में श्रीकृष्ण का स्मरण करें।
- दिन में एक बार ईश्वर से एकांत में हृदय संवाद करें।
मिथक बनाम सच्चाई
मिथ: केवल कठिन तप या वर्षों की साधना से ही भगवत प्राप्ति संभव है।
सच्चाई: सही समझ और ममता का पूर्ण समर्पण भी तुरंत आत्मिक आनंद दे सकता है।
अध्यात्म को शुद्ध रखना
अध्यात्म का उद्देश्य केवल भगवत प्राप्ति, निर्मल प्रेम और आंतरिक शांति है। इसे व्यापार या बहिर्मुखी प्रदर्शन का माध्यम न बनाएं।
सहज उपाय
- नाम जप और सत्संग से मन को निर्मल करें।
- गुरु और संत की आज्ञापालन में जीवन बिताएं।
- हर परिस्थिति में पहले प्रभु की ओर दृष्टि रखें।
FAQs
1. ममता क्या है?
किसी वस्तु, व्यक्ति, या अनुभव के प्रति गहरी आत्मीय भावना ही ममता है।
2. ममता को प्रभु में कैसे लगाएं?
सत्संग, नाम जप, और मनन से धीरे-धीरे संसार से ममता हटाकर प्रभु में स्थिर करें।
3. क्या ममता त्यागना कठिन है?
हाँ, लेकिन सही विवेक और गुरु कृपा से यह सरल हो जाता है।
4. सत्संग कहाँ करें?
जहाँ शुद्ध भक्ति, संत वाणी और निरपेक्ष भाव से सेवा का वातावरण हो, जैसे bhajans सुनते समय।
5. क्या बिना सत्संग के प्रभु प्राप्त हो सकते हैं?
बहुत कठिन है, क्योंकि सत्संग से ही सही मार्ग और प्रेरणा मिलती है।
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Originally published on: 2024-02-27T05:27:53Z



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