उपवास की शक्ति और संत कालिदास महाराज जी की विनम्रता
उपवास का महत्व
गुरुजी ने अपने प्रवचन में उपवास के महत्व पर गहन प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि उपवास न केवल शरीर के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है, बल्कि मन को निर्मल और पवित्र बनाने का भी अद्भुत साधन है। जब हम एक दिन में कम भोजन करते हैं, तो जठराग्नि प्रबल होती है और यह हमारे शरीर के रोगों को दूर करने में सहायक होती है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि उपवास का वास्तविक अर्थ अनावश्यक और भारी भोजन से विरत रहकर, जल, फल या हल्के सात्विक आहार से शरीर को विश्राम देना है, न कि उसे स्वादिष्ट और महंगे व्यंजनों का एक और उत्सव बना देना।
प्रेरणादायक कथा — संत कालिदास महाराज जी
इस discourse में सबसे हृदयस्पर्शी प्रसंग था संत कालिदास महाराज जी का। लगभग 49 वर्षों से वे प्रतिदिन केवल एक नारियल का ही सेवन करते हैं। वे अपनी तपस्या और सादगी के लिए प्रसिद्ध हैं।
एक बार जब उनसे आग्रह किया गया कि वे कुर्सी पर बैठ जाएं, तो उन्होंने विनम्रतापूर्वक मना कर दिया और जमीन पर ही बैठे। उनका कहना था: “कुर्सी पर तो संसार के लोग बैठते हैं, हम साधुजन के लिए धरती ही आसन है।” इतनी महान तपस्या के साथ अद्भुत विनम्रता का यह उदाहरण हर श्रोता के मन में अमिट छाप छोड़ देता है।
मूल संदेश
- वास्तविक आध्यात्मिक बल सादगी और संयम में है।
- भोजन और जीवन में न्यूनता आत्मबल को बढ़ाती है।
- विनम्रता से ही महिमा पूर्ण होती है।
दैनिक जीवन में 3 अनुप्रयोग
- सप्ताह में कम से कम एक दिन या 15 दिन में एक दिन उपवास करें, केवल जल या हल्के फल से।
- दैनिक जीवन में फिजूलखर्ची और आडंबर से बचें।
- किसी भी उपलब्धि के बावजूद विनम्रता बनाए रखें।
चिंतन के लिए प्रश्न
क्या मैं जीवन में बाहरी सुख-सुविधाओं से अलग होकर भी मन की शांति और संतोष का अनुभव कर सकता हूँ?
उपवास के आध्यात्मिक लाभ
गुरुजी के अनुसार उपवास के माध्यम से पापों का शीघ्र नाश होता है और मन को एकाग्र करने में मदद मिलती है। इसके अलावा, यह भावी कष्टों का सामना करने की शक्ति भी देता है।
मां पार्वती जी के जीवन प्रसंग का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि किस प्रकार उन्होंने कठिन तपस्या कर भगवान शिव की कृपा प्राप्त की। यह दर्शाता है कि कठिनाई और संयम, अनुग्रह प्राप्त करने के सशक्त मार्ग हैं।
सच्चा व्रत कैसा हो
- सुबह केवल जल, दोपहर हल्का फल, और रात्रि में कुछ भी न लें।
- आडंबरपूर्ण फलाहार से बचें।
- व्रत के दिन भजन, ध्यान और प्रभु-नाम स्मरण में मन लगाएं।
आध्यात्मिक takeaway
उपवास केवल भोजन त्याग का नाम नहीं है; यह मन, वाणी और कर्म की शुद्धि का अवसर है। संत कालिदास महाराज जी की तरह, अगर हम सादगी और विनम्रता अपनाएं, तो न केवल तन-मन को शांति मिलेगी बल्कि आत्मा का मार्ग भी प्रकाशित होगा। इस यात्रा में भक्ति, ध्यान और सत्संग का सहारा लें।
अगर आप भजन और सत्संग से अपने मन को और गहराई से जोड़ना चाहते हैं, तो bhajans सुनना अपनी साधना का हिस्सा बनाएं।
FAQs
क्या उपवास करने से शरीर कमजोर हो जाता है?
नहीं, यदि सही तरीके और सात्विक आहार के साथ किया जाए, तो यह शरीर की पाचन शक्ति और स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।
अगर स्वास्थ्य कारणों से व्रत संभव न हो तो?
नाम-जप, ध्यान और सात्विक भोजन के माध्यम से भी साधना की जा सकती है।
उपवास कितनी बार करना उचित है?
सप्ताह में एक बार या 15 दिन में एक बार उपवास से शुरू करना अच्छा है।
व्रत के दिन क्या-क्या करना चाहिए?
स्मरण, ध्यान, सत्संग और सेवा में समय बिताना चाहिए।
फलाहार में क्या शामिल करें?
केवल जरूरत के अनुसार हल्के फल एवं जल लें, आडंबर और भारी व्यंजनों से बचें।
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Originally published on: 2024-04-08T12:03:00Z



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