सत्य, संस्कार और अंतिम स्मरण: गुरुजी की अमृत वाणी से जीवन मार्गदर्शन
सत्य का मूल्य और झूठ की सीमाएं
गुरुजी ने स्पष्ट किया कि अपने स्वार्थ के लिए बोला गया झूठ पाप है, लेकिन यदि किसी के प्राण बचाने या उसका कल्याण करने के लिए बोला जाए तो पाप नहीं माना जाएगा। व्यापार या सामाजिक आचरण में सत्य को अपनाना ही उचित है। परहित में कहा गया असत्य, जब किसी की जान बचाता है, सुकृत माना जाता है।
बाल्यावस्था के संस्कार
छोटे बच्चों में भक्ति और सद्गुण के संस्कार डालना माता-पिता का धर्म है। बच्चों को माला जप, कीर्तन, और सादगी का अभ्यास दें। जैसा आचरण वे देखेंगे, वैसा ही आत्मसात करेंगे।
सबसे प्रेरक कथा: भरत जी और अजामिल
भागवत कथा में भरत जी ने राजपाट और परिवार त्यागकर साधना की, पर एक हिरण के बच्चे में इतनी ममता कर ली कि अंतिम समय श्री भगवान का स्मरण न कर हिरण का स्मरण किया। परिणामस्वरूप उनका अगला जन्म हिरण के रूप में हुआ। वहीं अजामिल पापमय जीवन जीते-जीते पुत्र का नाम ‘नारायण’ रखने के कारण, मृत्यु के समय पुत्र को पुकारते हुए ‘नारायण’ नाम लिया, और भगवान के पार्षद उन्हें ले गए।
मोरल इनसाइट
अंतिम समय का स्मरण अगला जन्म और गति निर्धारित करता है। जीवनभर का साधन अंतिम क्षण में स्मरण न होने से व्यर्थ हो सकता है, और पापमय जीवन में भी यदि अंतिम समय नाम आ जाए तो कल्याण हो सकता है।
व्यावहारिक अनुप्रयोग
- निरंतर नाम जप करें ताकि अंतिम समय भी वही स्मरण रहे।
- आसक्ति केवल भगवान में रखें, सांसारिक मोह से सावधान रहें।
- सत्संग और संतों के संग रहकर चेतना को शुद्ध करते रहें।
चिंतन हेतु प्रश्न
यदि आज ही मेरा अंतिम क्षण हो, तो क्या मेरे मन में भगवान का नाम और स्वरूप स्पष्ट होगा?
भोजन और सात्त्विकता
भजन में उन्नति के लिए सात्त्विक आहार आवश्यक है। प्याज-लहसुन जैसे तमोगुण उत्पन्न करने वाले पदार्थ त्यागना लाभकारी है। औषधि रूप में प्रयोग मान्य है, लेकिन भोग में नहीं।
प्रेम और मोह का अंतर
संसार में जिसे प्रेम कहा जाता है, वह प्रायः स्वार्थयुक्त मोह होता है। वास्तविक प्रेम केवल भगवान से बिना स्वार्थ के संभव है, जो प्रतिक्षण बढ़ता है और शुद्ध आनंद देता है।
मृत्यु के समय का आश्रय
यदि मन में अडिग आश्रय है—”मैं श्री राधा जी का हूं”—तो भगवत प्राप्ति हो जाती है, भले ही लगातार स्मरण उस क्षण न हो पाए। जैसे जगन्नाथ जी के अंग सेवक ने कुसंग में जाकर भी प्रभु की पादुका रखी, और अंत में वही उन्हें दिव्य लोक तक ले गई।
आश्रय का बल
दृढ़ आश्रय और गुरु से प्राप्त मंत्र का जप, साधक को भवसागर पार कराने वाला इंजन है।
FAQs
क्या परहित में असत्य बोलना पाप है?
यदि किसी की जान या भलाई बचाने के लिए हो तो नहीं, अन्यथा हानिकारक है।
अंतिम समय भगवान का स्मरण कैसे सुनिश्चित हो?
दिन-रात नाम जप की आदत डालकर।
क्या बच्चों को माला जप दे सकते हैं?
हाँ, छोटी माला देकर भक्ति संस्कार दिए जा सकते हैं।
सात्त्विक आहार क्यों महत्वपूर्ण है?
यह मन को निर्मल बनाकर भजन में मन लगाता है।
क्या मोह और प्रेम में अंतर है?
हाँ, मोह स्वार्थपूर्ण आसक्ति है, प्रेम निःस्वार्थ और केवल भगवान से संभव है।
आत्मिक takeaway
जीवन में सच्चाई, सात्त्विकता, अच्छे संस्कार और निरंतर नामस्मरण ही अंतिम समय का स्मरण और जीवन की श्रेष्ठ गति सुनिश्चित करते हैं। अडिग आश्रय, जैसे “मैं श्री जी का हूं”, साधक का कालातीत कवच है। प्रेरणादायक bhajans और संतों की वाणी से जुड़े रहना इस मार्ग को सहज और सुंदर बना देता है।
Watch on YouTube: https://www.youtube.com/watch?v=EPQ_Jc5Y9yA
For more information or related content, visit: https://www.youtube.com/watch?v=EPQ_Jc5Y9yA
Originally published on: 2024-07-07T14:48:42Z


Post Comment